कहाँ को चला था,कहाँ आया हूँ मैं,
चाहा था क्या और क्या पाया हूँ मैं।
नहीं मिलता कोई अपना कभी भी,
सभी हैं पराये जहाँ आया हूँ मैं।
मुझे कोई समझा नहीं तो हुआ क्या,
नहीं खुद को ही समझ पाया हूँ मैं।
कुछ देर ठहरो तो फिर घाव देना,
अभी तो ज़रा सा संभल पाया हूँ मैं ।