kalam ghis ghis ke...
Friday, October 22, 2010
क्या रिश्ता है तेरा मेरा.....
तुम हो जैसे स्वर्ण मृग,
मैं हूँ कागा काठ का।
तुम रहने वाली महलों की ,
मैं नहीं तुम्हारे ठाठ का।
तुम एक अछूती सी कोमल कन्या,
मैं एक बुड्ढा साठ का।
तुम शौक़ीन पकवानों की,
मैं गलीनुक्कर के चाट का।
क्या रिश्ता है तेरा मेरा,
जैसे अनपढ़ और एक पाठ का।
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