Tuesday, August 9, 2011

रात

गयी रात फिर से तुझे
नींद ना आई है।
कुछ तो हुआ है
जो तू सो ना पाई है॥

शायद रात की ख़ामोशी ने
फिर तुझे जगाया है।

या फिर शायद ये तेरे
मन की बेचैनी का साया है॥

मत बोल के बीते पल
तुझे अब याद नहीं आते।
तुने जो कुछ किया वोह तुझे
और नहीं सताते॥

मेरा अब तुझसे
बस एक ही सवाल है।
बना बैठा जो मेरे
जी का जंजाल है॥

क्यूँ आती है छुठे हाथ तुम
फिर से थामने।
शांत पड़े पानी में
फिर से कंकड़ मारने॥

क्या पाती है तू फिर से
सोये अरमान जगा के।
फिर चली जाती है तू क्यूँ
भोर के आते॥

Wednesday, July 27, 2011

काँटों से है भरा पथ तेरा,
स्वागत करती हैं हर मोड़ पर बाधाएं।
ठोकरों के लिए प्रस्तुत हैं पत्थर,
झाड-लताएं जैसे पैरों को खींच खाएं।।


रात्री का गुमनाम अँधेरा,
सन सन करती हवाएं।
नंगे पाँव , खुले बदन चल रहा राही,
सर्द मौसम लहू को जमाएं।।


दौड़ते चलते थकते रुकते,
गिरते पड़ते उठते झुकते।
अग्रसर रह निज कस्ठ-पथ पे,
अब मौत भी कदम तेरे न रोक पाए।।

उठा मुख देख दूर क्षितिज पर
सिन्दूर-सरीखी लालिमा है बिखरी आज।
दर्शाती जन्म नए आशा-सूर्य का
दमन कर रहा जो रात्रि-राज्य।।


बन चुके हैं पर्वत पाँव तेरे,
रिस रही लालिमा फटी एड़ियों से।
वोह देख सामने , वही है तेरी मंजिल,
निकला था जिसके लिए तू घर से॥