Tuesday, August 9, 2011

रात

गयी रात फिर से तुझे
नींद ना आई है।
कुछ तो हुआ है
जो तू सो ना पाई है॥

शायद रात की ख़ामोशी ने
फिर तुझे जगाया है।

या फिर शायद ये तेरे
मन की बेचैनी का साया है॥

मत बोल के बीते पल
तुझे अब याद नहीं आते।
तुने जो कुछ किया वोह तुझे
और नहीं सताते॥

मेरा अब तुझसे
बस एक ही सवाल है।
बना बैठा जो मेरे
जी का जंजाल है॥

क्यूँ आती है छुठे हाथ तुम
फिर से थामने।
शांत पड़े पानी में
फिर से कंकड़ मारने॥

क्या पाती है तू फिर से
सोये अरमान जगा के।
फिर चली जाती है तू क्यूँ
भोर के आते॥

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