Wednesday, July 27, 2011

काँटों से है भरा पथ तेरा,
स्वागत करती हैं हर मोड़ पर बाधाएं।
ठोकरों के लिए प्रस्तुत हैं पत्थर,
झाड-लताएं जैसे पैरों को खींच खाएं।।


रात्री का गुमनाम अँधेरा,
सन सन करती हवाएं।
नंगे पाँव , खुले बदन चल रहा राही,
सर्द मौसम लहू को जमाएं।।


दौड़ते चलते थकते रुकते,
गिरते पड़ते उठते झुकते।
अग्रसर रह निज कस्ठ-पथ पे,
अब मौत भी कदम तेरे न रोक पाए।।

उठा मुख देख दूर क्षितिज पर
सिन्दूर-सरीखी लालिमा है बिखरी आज।
दर्शाती जन्म नए आशा-सूर्य का
दमन कर रहा जो रात्रि-राज्य।।


बन चुके हैं पर्वत पाँव तेरे,
रिस रही लालिमा फटी एड़ियों से।
वोह देख सामने , वही है तेरी मंजिल,
निकला था जिसके लिए तू घर से॥

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